Monday 8 May 2017

किसको चाहिए मनुवाद से आज़ादी ????

किसको चाहिए मनुवाद से आज़ादी ????
--------------------------------------------------------------
तथाकथित नकली समाज सुधारक, जिन्होंने मनुस्मृति को कभी ठीक तरह से बिश्लेशन तक करने की कोशिस नहीं किये, उनके तरफ से मनुस्मृति जैसे पवित्र वैदिक राष्ट्रिय ग्रन्थ पर लगाये जाने वाले तीन मुख्य आरोप और उस आरोप को मनुस्मृति के द्वारा ही में खंडन करना चाहूँगा।
----------------------------------------------------------------
आरोप १:
जन्म के आधार पर जातिप्रथा का निर्माण मनु द्वारा किया हुआ प्रथा है।

उत्तर:
यह जाती ब्यबस्था नहीं वर्ण व्यवस्था है । वर्ण शब्द “वृञ” धातु से बनता है जिसका अर्थ चुनना या वरण करना होता हे। जैसे वर अर्थात् कन्या द्वारा चुना गया पति। ईससे पता चलता है कि वैदिक व्यवस्था कन्या को अपना पति चुनने का पूर्ण अधिकार देती है ।

मनुस्मृति ३.१०९ (3.109) में साफ़ कहा है कि अपने गोत्र या कुल की दुहाई देकर भोजन करने वाले को स्वयं का उगलकर खाने वाला माना जाए | अतः मनुस्मृति के अनुसार जो जन्मना ब्राह्मण या ऊँची जाति वाले अपने गोत्र या वंश का हवाला देकर स्वयं को बड़ा कहते हैं और मान-सम्मान की अपेक्षा रखते हैं उन्हें तिरस्कृत किया जाना चाहिए |

मनुस्मृति २. १३६ (2.136): धनी होना, बांधव होना, आयु में बड़े होना, श्रेष्ठ कर्म का होना और विद्वत्ता यह पाँच सम्मान के उत्तरोत्तर मानदंड हैं | इन में कहीं भी कुल, जाति, गोत्र या वंश को सम्मान का मानदंड नहीं माना गया है |

वर्णों में परिवर्तन करने का नियम :

मनुस्मृति १०.६५(10.65): ब्राह्मण भी शूद्र बन सकता और शूद्र भी ब्राह्मण हो सकता है | इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते हैं ।

मनुस्मृति ९.३३५(9.335): शरीर और मन से पवित्र रहने वाला, ज्ञानी लोगों के साथ साथ रहने वाला, मिष्ठभाषी, नीरहंकार, अपने से उच्च वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्राम्हण व द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है |

मनुस्मृति के ज्यादात्तर श्लोक कहते हैं कि उच्च वर्ण का व्यक्ति भी यदि उच्च कर्म नहीं करता, तो शूद्र (अशिक्षित) बन जाता है |

मनुस्मृति उस काल की है जब जन्म के हिसाब से जाति व्यवस्था के विचार का भी कोई अस्तित्व नहीं था। मनुस्मृति जन्म के आधार पर जाती ब्यबस्था का कहीं भी समर्थन नहीं करती | महर्षि मनु ने मनुष्य के गुण  कर्म स्वभाव पर आधारित समाज व्यवस्था की रचना कर के वेदों में ईश्वर द्वारा दिए गए निर्देश का ही पालन किया है ( ऋग्वेद-१०.१०.११-१२,  यजुर्वेद-३१.१०-११, अथर्ववेद-१९.६.५-६) |
------------------------------------------------------------------
आरोप २:
शूद्रों को नीच दिखाना और उनके लिए कठोर दंड का विधान करना और ब्रम्हण जैसे ऊँची जात में जन्मीत लोगों के लिए विशेष प्रावधान रखना मनु द्वारा प्रणीत घृण्य ब्यबस्था हे।

उत्तर :
मनुस्मृति के २६८५ (2685) में से १४७१ (1471) श्लोक प्रक्षिप्त पाए गए हैं मतलब आधी से ज्यादा मनुस्मृति मिलावटी है ।
( हम एक बार फ़िर कहना चाहते हे कि मूल रूप का मनुस्मृति के हिसाब से जन्म से ही कोई ब्राह्मण या द्विज नहीं होता, जाती का सम्बन्ध सिर्फ शिक्षा प्राप्ति से है | )

यदि, हम वेदों पर आधारित मूल मनुस्मृति का अवलोकन करें तो मनु की दण्ड व्यवस्था अपराध का प्रकार और प्रभाव, अपराधी की शिक्षा, पद और समाज में उसके रुतबे पर निर्भर करता हे। ज्ञानी लोगों को मनु ब्राह्मण का दर्जा देकर अधिक सम्मान देते हैं | जो विद्या, ज्ञान और संस्कार से दूसरा जन्म प्राप्त कर द्विज बन चुके हैंवे अपने सदाचार से ही समाज में प्रतिष्ठा पाते हैं | अधिक सामर्थ्यवानव्यक्ति, क्षमतासम्पर्ण ब्यक्ति अधिक जवाबदेही भी होते हे। यदि वे अपने उत्तरदायित्व कोनिभाते में असफल रहते हैं तो वे अधिक कठोर दण्ड के भागी हैं ।

मनुस्मृति ८.३३५(8.335) -  जो भी अपराध करे, वह अवश्य दण्डनीय है चाहे वह पिता, माता, गुरु, मित्र, पत्नी, पुत्र या पुरोहित ही क्यों न हो |

मनुस्मृति ८.३३६(8.336) -  जिस अपराध में सामान्य जन को एक पैसा दण्ड दिया जाए वहां शासक वर्ग को एक हजार गुना दण्ड देना चाहिए |  दूसरे शब्दों में जो कानूनविद् हैं, प्रशासनिक अधिकारी हैं यान्यायपालिका में हैं वे अपराध करने पर सामान्य नागरिक से १००० गुना अधिकदण्ड के भागी हैं |

मनुस्मृति ८.३३७ (8.337) व ८.३३८(8.338) -  अगर कोई अपनी इच्छा से और अपने पूरे होशो हवास में चोरी करता है तो उसे एक सामान्य चोर से ८(8) गुना सजा का प्रावधान होनाचाहिए – यदि वह शूद्र है, अगर वैश्य है तो १६ गुना, क्षत्रिय है तो ३२(32) गुना, ब्राह्मण है तो ६४ (64) गुना | यहां तक कि ब्राह्मण के लिए दण्ड १०० (100) गुना या १२८ (128) गुना तक भी हो सकताहै | दूसरे शब्दों में दण्ड अपराध करने वाले की शिक्षा और सामाजिक स्तर केअनुपात में होना चाहिए |
इसीसे ये प्रतीत होता हे मनु शुद्र जाती ( शिक्षा के आधार पर ) प्रति वेसे कोई अन्याय पूर्ण दंड बिधान नहीं किये वल्कि शिक्षा के कमी के कारण दंड निति में राहत भी दिए हुए है।
------------------------------------------------------------------
आरोप ३:

मनु नारी का विरोधी था और उनका तिरस्कार करता था और उसने स्त्रियों के लिए पुरुषों से कम अधिकार का विधान किया ।

उत्तर : वेद के बाद मनुस्मृति ही एक ऐसा ग्रन्थ हे जो नारी जाती को सन्मान व स्वाभिमान से जीने का अधिकार देता हे।
मनुस्मृति ३.५६ – जिस समाज और परिवार में नारी जाती का आदर सम्मान होता है, वहां देवता एवं सुख़ समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका तिरस्कार होता हे वहां सभी काम निष्फल हो जाते हैं भले ही कोई कितना भी श्रेष्ट कर्म कर लें उसको नारी जाती प्रति असम्मान दिखने की कारण अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है ।
ये पंक्तिया ये प्रमाणित करते हे की मनु मातृशक्ति का आदर करते थे ल। और मनुस्मृति का ये नियम हर एक समाज, हर एक परिवार, राष्ट्र और समग्र मानव जाति पर लागू होता है।
------------------------------------------------------------------

में गर्ब के साथ ये समस्त बेबुनियाद आरोपों को खंडित करना चाहूँगा। क्यों की आरोप करने वाले खुद ही कुश्चित मानसिकता के होते है। ये कम ज्ञान वाले बुद्धिजिबि भारत में वैदिक परंपरा की गारिमा को क्षुर्न करने के लिए समाज को बांटते हुए अपना अपना राजनैतीक फायदा के लिए निचले स्थर तक गिर जाते है।

मनुस्मृति के बिरोधियों से एक सवाल पूछना चाहता हूँ की आज की तारीख में आपने कहीं मूल स्वरुप की बाइबिल देखा हे क्या ? वही बाइबिल हे, जो की तथा कथित मूल स्वरुप की बाइबिल के अनुवाद के अनुवाद के अनुवादों में से हे, जबकि वही मूल स्वरुप कभी कहीं किसीने देखने का नज़ीर नही हे।

कहाजाता हे की क़ुरान भी मुहम्मद द्वारा दी हुई मूल शिक्षाओं का संगृहीत प्रक्ष्येपित प्रतिलिपि है। जबकि वो मूल स्वरुप पाण्डुलिपि कही देखने को नहीं मिलता हे।

वेसे ही मूल रूप की मनुस्मृति में भी मिलाबटी हुई हे ये सत्य हे, श्लोकों में हुई मिलावट को आसानी से पहचानकर अलग किया जा सकता है। और कई बिद्वान वेसे किये हुए भी है। प्रक्षेपण रहित मूल मनुस्मृति वेदों की मान्यताओं पर आधारित हे। और मूल स्वरुप की वेद आज भी सुरक्षित हे। इसीलिए मूल स्वरुप की मनुस्मृती सर्बोत्तम कृति है, जिसकी गुण -कर्म- स्वभाव आधारित व्यवस्था मनुष्य और समाज को बहुत ऊँचा उठाने वाली है ।

बुलहर, मैकडोनल, कीथ इत्यादि बिदेशी बिद्वान भी मनुस्मृति में मिलावट मानते हैं | जबकि तथाकथित नकली सेक्युलर लोग जो स्वतंत्र भारत का संभिधान प्रणेता डा. अम्बेडकर को अपना सर्बोपरि मानने का दावा करते हे, वही डा. अम्बेडकर ने भी प्राचीन ग्रंथों में मिलावटी होने का स्वीकार किये हैं | वे रामायण, महाभारत, गीता पुराण और वेदों तक में भी प्रक्षेप मानते हैं ( हालांकि वेदों का कभी प्रक्ष्येप नहीं हो सकता)। डा. अम्बेडकर ने मनुस्मृति के परस्पर विरोधी, असंगत श्लोकों को कई स्थानों पर दिखाया भी है | वे जानते थे कि मनुस्मृति में कहां कहां प्रक्षेप हैं | लेकिन वे जानबूझ कर इन श्लोकों को प्रक्षिप्त कहने से खुद को दूर रखे क्योंकि उन्हें अपना मतलब हाशील करना था | उनके इस पक्षपाती व्यवहार ने उन्हें दलितों का नायक जरूर बना दिया | इस तरह मनुविरोध को बढ़ावा देकर उन्होंने खुद के साथ साथ उस समय के और अनेको लोगों का राजनीतिक हित साधन करने में भी सक्ष्यम् हुए | उनकी इस मतान्धता ही आज समाज में विद्वेष का ज़हर घोल दिया है और एक सच्चे नायक मनु को सदा के लिए खलनायक बना दिया ।

JNU में कन्हैया मनुवाद से आज़ादी की नारा से न्यूज़ चैनल में सुर्खियों पर रहता हे तो कहीं अग्निवेश जैसे आर्य समाजी पाखण्ड धर्मगुरु (जो बिगबॉस जैसे अश्लील और नैतिकता रहित TV रियल्टी शो में भाग लेने में कभी स्वामी ओम जेसे फेक बाबा को भी पछाड़ हुआ हे) खुदको समाज संस्कारक बताते हुए मनुस्मृति को समाज के बांटने का आरोप लगाते हुए जलादेता है।
स्वामी अग्निवेश सिर्फ़ राजनीतिक प्रसिद्धि पाने के लिये ही जब मनुस्मृति का दहन किया तब महाशय ये भूल गए की आर्य समाज के प्रतिष्ठाता महर्षि दयानंद ने जो समाज की रचना का सपना देखा था वह महर्षि मनु की वर्ण व्यवस्था के अनुसार ही था | और उन्होंने प्रक्षिप्त हिस्सों को छोड़ कर अपने ग्रंथों में सर्वाधिक प्रमाण (५१४ श्लोक) मनुस्मृति से दिए हैं |

आज मनुस्मृति का विरोध वो लोग कर रहे है, जिन्होंने मनुस्मृति को कभी गंभीरता से पढ़ा नहीं, केवल वोट बैंक की कुश्चित राजनैतिक मनसा के चलते विरोध किए।

अंत में मै ये कहना चाहूँगा की मनुवाद ही मानववाद हे।
मनुवाद ही राष्ट्रवाद है। मनुवाद के खिलाफ वाले निचले स्थर की राजनीति में बिश्वास रखते हे और माओवाद की मानसिकता रखते हे।

© Uma Sankar Sahu

No comments: